आचार्य कैलाश चंद्र सुयाल बोले- महालक्ष्मी पूजन 1 नवंबर को ही मनाया जाना अधिक तर्कपूर्ण है।
नैनीताल। दीपावली पर महालक्ष्मी पूजन की तिथि को लेकर चल रहे विवाद के बीच सेवानिवृत वन क्षेत्राधिकारी, व्यास तथा आचार्य कैलाश चंद्र सुयाल का स्पष्ट मानना है कि विभिन्न मतों के अनुसार दोनों ही दिन (31 अक्टूबर व एक नवबंर) श्री महालक्ष्मी पूजन किया जा सकता है परंतु द्वित्तीय दिवस यानी एक नवंबर को मनाया जाना अधिक तर्कपूर्ण है। इसलिए इस वर्ष सभी आग्रहों को त्यागकर श्री महालक्ष्मी पूजन दिनांक 1 नवंबर को किया जाए। आचार्य सुयाल ने बताया कि महालक्ष्मी पूजन की तिथि 31 अक्टूबर अथवा । नवंबर को लेकर किंचित विवाद की स्थिति बनी हुई है जबकि कांची पीठाधीश्वर शंकराचार्य स्वामी विजयेन्द्र सरस्वती महाराज द्वारा गत वर्ष ही इस वर्ष के महालक्ष्मी पूजन के लिए 1 नवंबर की तिथि विभिन्न विद्वानों से विचार विमर्श पश्चात सुनिश्चित किया था।
तो अब इस प्रकार इसे विवादित करना समीचीन नहीं है। कहा कि कुमाऊं क्षेत्र में प्रचलित तीनों प्रमुख पंचांगों श्री गणेश मार्तण्ड, श्री तारा प्रसाद व नक्षत्र लोक में 1 नवंबर को महालक्ष्मी पूजन प्रदर्शित किया गया है। 31 नवंबर को दीपावली मनाने का आह्वान करते लोगों तक यह संदेश देना चाहेंगे कि सर्वमान्य ज्योतिष ग्रन्थ तिथि तत्व में दण्डैकरजनी योगे दशरू स्यात्तु परेहनि तथा विहार पूर्वेद्युकहकर 1 नवंबर को ही श्री महालक्ष्मी पूजन का निर्देश दिया है। सुयाल के मुताबिक श्री नयना देवी मंदिर के सूचना पटल पर भी 1 नवंबर को ही श्री महालक्ष्मी पूजन प्रदर्शित किया गया है, वहीं प्रांतीय व्यापार मंडल हल्द्वानी द्वारा आयोजित निर्णय सभा में 1 नवंबर को श्री महालक्ष्मी पूजन प्रदर्शित किया गया है जबकि प्रादेशिक राजधानी देहरादून में नगर के मान्य विद्वानों की श्री कालिका मंदिर में आयोजित सभा में 1 नवंबर को ही श्री महालक्ष्मी पूजन प्रदर्शित किया गया है। मुख्य बात यह है कि
दोनों दिन प्रदोष व्यापिनीअमावास्या होने पर द्वितीय
दिवस महालक्ष्मी पूजन का
मार्ग प्रशस्त हो गया है साथ ही चूंकि प्रथम दिवस अमावास्या चतुर्दशी विद्धा
है इसलिए इस दिन श्री महालक्ष्मी पूजन उचित नहीं है, परंतु इस विषय में मतभेद होने का यह अर्थ नहीं है कि इसमें विद्वानों की कोई त्रुटि है। दरअसल ज्योतिष के
मुहूर्तादि ग्रहों नक्षत्रों व तारों की परिगणित सिद्धांतों से परिचालित होता
है इसलिए यह बहुत ही जटिल विषय
है तथा इसमें मत विभाजन अवश्यंभावी
है। यह भारतीय ज्योतिष की महत्ता को
भी परिलक्षित करता है। विश्व के किसी
भी कलैंडर में ग्रह नक्षत्रों का इतना सूक्ष्म परिज्ञान नहीं दिखाई देता है। संक्षेप में यह कहा जा सकता है कि विभिन्न मतों के अनुसार दोनों ही दिन श्री महालक्ष्मी
पूजन किया जा सकता है परंतु द्वितीय दिवस इसे मनाया जाना अधिक तर्कपूर्ण है। इसलिए इस वर्ष सभी आग्रहों को त्यागकर श्री महालक्ष्मी पूजन 1
नवंबर को किया जाएगा।